6.2.12

Ghazal - Ahmed Faraz


Lyrics: Ahmed Faraz
Singer: Ghulam Ali
ऐसे चुप है कि ये मंज़िल भी कड़ी हो जैसे,
तेरा मिलना भी जुदाई की घड़ी हो जैसे।
अपने ही साये से हर गाम लरज़ जाता हूँ,
रास्ते में कोई दीवार खड़ी हो जैसे।
कितने नादाँ हैं तेरे भूलने वाले कि तुझे
याद करने के लिए उम्र पड़ी हो जैसे।
मंज़िलें दूर भी हैं, मंज़िलें नज़दीक भी हैं,
अपने ही पाँवों में ज़ंजीर पड़ी हो जैसे।
आज दिल खोल के रोए हैं तो यों खुश हैं ‘फ़राज़’
चंद लमहों की ये राहत भी बड़ी हो जैसे।
गाम = Step
लरज़ = Shake

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